मखाना विकास बोर्ड के गठन से किसानों को कई लाभ मिल सकते हैं, और यह बिहारी सुपरफूड की बढ़ती मांग के बीच खास महत्व रखता है।

मखाना विकास बोर्ड

भारत के प्रमुख सुपरफूड्स में से एक मखाना विकास बोर्ड अपनी पौष्टिकता और औषधीय गुणों के कारण वैश्विक स्तर पर चर्चित हो रहा है। पहले सिर्फ धार्मिक अवसरों और त्योहारों पर उपयोग किया जाने वाला मखाना, अब स्वस्थ नाश्ते के रूप में अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बना चुका है। इस पृष्ठभूमि में, बिहार सरकार द्वारा मखाना विकास बोर्ड की स्थापना का निर्णय किसानों और श्रमिकों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है।

बिहार का मखाना: एक पोषण से भरपूर खजाना

बिहार देश के कुल मखाना उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा संभालता है। यहां के तालाबों और पोखरों में मखाना की खेती से लगभग 50 से 60 हजार किसान और मजदूर सीधे जुड़ें हैं। मधुबनी जिले में ही करीब 10 हजार किसान मखाना की खेती करते हैं। वर्तमान में बिहार में 40 से 45 हजार हेक्टेयर में मखाना उगाया जा रहा है, लेकिन मांग और कीमत दोनों में वृद्धि से इसका क्षेत्र और भी विस्तारित हो सकता है। 

मखाना को “बिहारी सुपरफूड” कहना उचित है क्योंकि इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, आयरन और एंटी-ऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है। यह विशेष रूप से डायबिटीज सहित विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है।

मखाना विकास बोर्ड: किसानों की आशाओं का स्थान

मखाना विकास बोर्ड के स्थापित होने से किसानों को एक संगठित सहायता प्रणाली मिलेगी। पहले, किसान ज्यादातर अकेले या छोटे समूहों में उत्पादन और बिक्री करते थे, जिससे उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता था। बोर्ड के गठन के बाद, उन्हें विभिन्न प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाएंगी:

तकनीकी सहायता – विज्ञान आधारित खेती, नए प्रकार के बीज, तालाब प्रबंधन तथा आधुनिक तकनीकों के अपनाने के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाएगा। 

मार्केटिंग और ब्रांडिंग– बिहार के मखाने को एक “ग्लोबल ब्रांड” के रूप में विकसित करने की कोशिश की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप निर्यात में वृद्धि होगी और किसानों को सीधे विदेशी बाजारों से लाभ मिल सकेगा।

किसानों की आय पर प्रभाव

वर्तमान में, मखाने का औसत बाजार मूल्य 500 से 1200 रुपये प्रति किलो के बीच है, जो उसकी गुणवत्ता और ग्रेडिंग पर निर्भर करता है। हालांकि, किसानों को इस मूल्य का काफी छोटा हिस्सा प्राप्त होता है, क्योंकि बिचौलिये बड़ा मुनाफा निकाल लेते हैं।

यदि बोर्ड का गठन किया जाए और सीधे किसानों से बाजार तक की सप्लाई चेन बनाई जाए, तो किसानों की आय में 20–30% तक की वृद्धि संभव है। छोटे और सीमांत किसान तालाब पट्टा प्राप्त करके मखाना उत्पादन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।

बिहारी सुपरफूड की वैश्विक मांग

वर्तमान में, अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में मखाना की मांग में तेजी आ रही है। यह हेल्थ-फोकस्ड मार्केट में “फॉक्स नट्स” या “लोटस सीड्स” के नाम से लोकप्रिय हो रहा है। योगा और फिटनेस के बढ़ते ट्रेंड्स के चलते इसकी खपत में दोगुनी वृद्धि हो चुकी है। यही वजह है कि बिहार का मखाना अब एक अंतरराष्ट्रीय सुपरफूड बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

हालांकि, मखाना बोर्ड के गठन के साथ-साथ कुछ चुनौतियाँ भी सामने आएंगी:

तालाबों और जल संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन 

किसानों तक तकनीक और प्रशिक्षण की पहुँच बनाना 

बिचौलियों के प्रभाव को समाप्त करना 

निर्यात मानकों (गुणवत्ता, पैकेजिंग, सर्टिफिकेशन) को पूरा करना 

यदि सरकार और किसान एकजुट होकर इन चुनौतियों का सामना करें, तो मखाना उद्योग बिहार की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों तक पहुंचा सकता है।

निष्कर्ष

मखाना विकास बोर्ड का निर्माण केवल किसानों के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण बिहार के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। यह बोर्ड किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ स्थानीय रोजगार, निर्यात और ब्रांड मूल्य को भी बढ़ाने में सहायक होगा। आगामी वर्षों में, बिहार का मखाना सिर्फ “व्रत का फल” नहीं, बल्कि “वैश्विक स्वास्थ्यवर्धक स्नैक” के रूप में विश्व के विभिन्न उपभोगताओं के बीच अपनी पहचान स्थापित करेगा।

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