जाति के आधार पर मतदान न करने का आग्रह: प्रशांत किशोर की बिहार की जनता को अपील

जाति के आधार पर मतदान

बिहार की राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जाति के आधार पर मतदान हमेशा से एक महत्वपूर्ण पहलू रही है, जो चुनावों के दौरान बड़ा निर्णय करती है। राजनीतिक दल अक्सर चुनावी रणनीतियों का निर्धारण जातिगत समीकरणों के आधार पर करते हैं। इसी पारंपरिक सोच को चुनौती देते हुए प्रशांत किशोर, जो जन सुराज अभियान के संस्थापक हैं, ने मुजफ्फरपुर के सकरा में एक सभा के दौरान लोगों से एक खास निवेदन किया। उन्होंने कहा, “जाति के आधार पर वोट मत करो, बल्कि राज्य की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर वोट डालो।”

पीके का संदेश: मुद्दों के आधार पर मतदान करें

प्रशांत किशोर (पीके) ने साफ तौर पर बताया कि बिहार की पिछड़ेपन और समस्याओं की असली जड़ जातिगत राजनीति है। 

दशकों से नेता सिर्फ जाति के नाम पर वोट मांगते रहे हैं, जबकि विकास के नाम पर हासिल की गई उपलब्धियाँ नगण्य हैं। 

यदि जनता इस बार भी जाति के आधार पर मतदान करती है, तो बिहार की स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं है। 

बिहार को एक नई दिशा में ले जाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

बुजुर्गों और बच्चों के लिए महत्वपूर्ण घोषणाएँ

अपने भाषण में पीके ने कुछ ऐसे वादों का उल्लेख किया जो जनता के बीच काफी उत्साह का संचार कर रहे हैं। 

बुजुर्गों के लिए 2000 रुपये की पेंशन की व्यवस्था की जाएगी, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें। 

गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा और सहायक सेवाएँ प्रदान करने का वादा किया गया है, ताकि वे बिना किसी आर्थिक दबाव के पढ़ाई कर सकें। 

स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने का लक्ष्य है, ताकि युवाओं को पलायन करने की आवश्यकता न पड़े।

इन वादों से यह स्पष्ट है कि पीके केवल चुनावी वादे नहीं कर रहे, बल्कि उनके पास एक ठोस दृष्टिकोण है जिसे वे आगे बढ़ाने का इरादा रखते हैं।

बिहार की दयनीय स्थिति का कारण 

प्रशांत किशोर ने एक सभा के दौरान यह प्रश्न उठाया कि बिहार की दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है। 

शिक्षा स्तर 

सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत ही खराब है, जहां शिक्षकों की संख्या कम है और अच्छी शिक्षा का अभाव है। 

स्वास्थ्य सेवाएँ 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है, और वे सही तरीके से कार्य नहीं कर रहे हैं। 

रोजगार संकट 

अनेक युवा रोज़गार की तलाश में पंजाब, दिल्ली और मुंबई जाने पर मजबूर हैं। 

 बुनियादी सुविधाएँ 

बिहार सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं में काफी पीछे है। 

प्रशांत किशोर का मानना है कि जब तक लोग इन गंभीर मुद्दों पर ध्यान देकर वोट नहीं देंगे, तब तक नेताओं की प्राथमिकताएँ भी नहीं बदलेंगी।

जन सुराज अभियान की प्रभावशीलता

प्रशांत किशोर ने पिछले कुछ महीनों में बिहार के विभिन्न गाँवों का दौरा किया है, जहाँ उन्होंने लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया है।

वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि परिवर्तन केवल चुनावी घोषणा पत्र के माध्यम से नहीं बल्कि जनसमर्थन और जागरूकता के जरिए ही संभव है।

सकरा की सभा में जुटी भीड़ यह दर्शाती है कि उनके संदेश को आम लोग गंभीरता से ग्रहण कर रहे हैं।

निष्कर्ष

प्रशांत किशोर का यह बयान बिहार की राजनीति में एक नई बहस को जन्म देता है। उनका यह विचार कि “जात-पात को देखते हुए वोट न करें” केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह उस राजनीतिक संस्कृति के लिए एक चुनौती है जो वर्षों से जातिगत आधार पर चुनाव जीतती आ रही है।

अगर असल में लोग विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतदान करना शुरू कर दें, तो बिहार का भविष्य एक नए मोड़ पर आ सकता है। पीके के वादे और उनका जन सुराज अभियान इसी दिशा में एक ठोस पहल है।

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