भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की सक्रियता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, बिहार से संबंधित एक हालिया घटनाक्रम ने सभी को हैरान कर दिया है। चुनाव आयोग की जानकारी के अनुसार, राज्य में 15 ऐसे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने पिछले छह वर्षों में कोई भी चुनाव नहीं लड़ा है। 2019 से अब तक इन दलों ने न तो विधानसभा और न ही लोकसभा चुनाव में भाग लिया है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, चुनाव आयोग अब इन दलों की मान्यता और उपलब्धियों पर पुनर्विचार करने की योजना बना रहा है।
राजनीतिक दलों के लिए दिशा-निर्देश
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत, किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को कई प्रकार की सुविधाएँ और अधिकार प्रदान किए जाते हैं। इनमें चुनावी प्रतीकों का आरक्षण, राजनीतिक संसाधनों का उपयोग
आदि शामिल हैं। लेकिन यह तब ही लागू होता है जब दल चुनावी प्रक्रिया में सक्रियता से भाग ले रहे हों। यदि कोई पार्टी लगातार निष्क्रिय रहती है, तो चुनाव आयोग उसके दर्जे और मान्यता को समाप्त कर सकता है।
बिहार में निष्क्रिय दल
चुनाव आयोग की रिपोर्ट में बिहार के 15 ऐसे दल शामिल हैं, जिन्होंने 2019 के बाद से किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। इनमें कुछ क्षेत्रीय दल हैं, जबकि कुछ ने पहले सक्रिय राजनीति में अपनी पहचान बनाई थी। हालांकि, पिछले कुछ समय से उनकी गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप्प पड़ी हैं। आयोग का यह मानना है कि अगर दल केवल कागजों पर ही मौजूद हैं, तो उनका लोकतांत्रिक अस्तित्व संदेह में पड़ जाएगा।
मान्यता और सुविधाएँ रद्द करने का प्रावधान
यदि किसी राजनीतिक दल की गतिविधियाँ लगातार निष्क्रिय रह जाती हैं, तो उसकी मान्यता समाप्त की जा सकती है। ऐसा होने पर, चुनाव चिह्न का अधिकार भी खो दिया जाएगा। इसके अलावा, चुनाव आयोग द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाएँ, जैसे मुफ्त प्रसारण समय, चुनावी फंडिंग के लाभ और सरकारी सहायता भी वापस ले ली जाएगी। यह कदम इस उद्देश्य से उठाया गया है कि केवल वे दल जीवित रहें जो सचमुच जनता की सेवा में तत्पर हैं और चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी निभाना चाहते हैं।
लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के संकेत
चुनाव आयोग का यह निर्णय लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में, यह अनिवार्य है कि राजनीतिक दल सक्रिय और उत्तरदायी बने रहें।
निष्क्रिय दलों की उपस्थिति न सिर्फ प्रशासनिक संसाधनों पर दबाव डालती है, बल्कि यह नागरिकों के साथ धोखाधड़ी का भी कारण बनती है।
निष्कर्ष
बिहार के 15 राजनीतिक दलों पर चुनाव आयोग की कार्रवाई यह स्पष्ट करती है कि नाम के लिए पार्टी बनाकर लोकतंत्र का हिस्सा नहीं बना जा सकता। सक्रियता, जनता की समस्याओं पर ध्यान देना और चुनावों में भागीदारी ही किसी भी राजनीतिक दल की असली पहचान होती है। यह निर्णय आने वाले समय में अन्य राज्यों और दलों के लिए एक सावधानी का संकेत देगा कि लोकतंत्र में केवल वही स्थान है जो सक्रिय और जिम्मेदार होता है।
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