बचपन का समय बेगुनाही और सीखने का अवसर होता है, इसलिए स्कूलों को बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सकारात्मक वातावरण प्रदान करना चाहिए। लेकिन हाल ही में बिहार के मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय में एक मासूम बच्चे के साथ अमानवीय बर्ताव ने न केवल शिक्षा प्रणाली पर बल्कि बच्चों की सुरक्षा पर भी गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
छह साल के एक बच्चे को स्कूल के खेल के मैदान में रस्सी से उल्टा लटकाया गया। यह सब उस स्थान पर हुआ, जहां बच्चों को पढ़ाई और खेलने की पूरी आजादी मिलनी चाहिए थी।
क्या है पूरा मामला?
मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय में एक 6 वर्षीय बच्चे को अमानवीय तरीके से सजा दी गई, जिसमें उसे रस्सी से उल्टा लटकाया गया। बच्चे की मां इस स्कूल में एक शिक्षिका हैं। घटना की सूचना मिलते ही उन्होंने स्कूल प्रशासन से शिकायत की और स्थानीय पुलिस को भी इस बारे में बताया।
हालांकि, प्रशासन और पुलिस की ओर से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए। जब न्याय की उम्मीद लगभग खत्म हो गई, तो मां ने अदालत का सहारा लेने का निर्णय लिया।
मां की पीड़ा और संघर्ष
वह मां, जिसने अपने बच्चे को सुरक्षित माहौल और उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल में दाखिला दिलाया था, अब अपने बच्चे की रक्षा के लिए न्यायालय की चौखट तक पहुंचने को मजबूर हो गई है। एक ओर, वह एक शिक्षिका की भूमिका निभाती हैं, जहां वे दूसरों के बच्चों को शिक्षित करती हैं, जबकि दूसरी ओर, उन्हें अपने पुत्र के अधिकारों और सुरक्षा के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है।
यह घटना न केवल एक अभिभावक के दर्द को प्रकट करती है, बल्कि इस बात को भी दर्शाती है कि शिक्षा संस्थान कितने असंवेदनशील और लापरवाह हो सकते हैं।
स्कूल प्रबंधन और पुलिस की मौन स्थिति
यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है कि स्कूल प्रशासन ने इस घटना के प्रति त्वरित और कठोर कार्यवाही क्यों नहीं की? यह बच्चे के साथ इस तरह के आचरण करने वालों की पहचान कर उन्हें दंडित करना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी थी।
पुलिस की निष्क्रियता भी विचारों को उत्पन्न करती है। जब बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा की बात होती है, तब कानून लागू करने वाले संगठनों की चुप्पी संकट का सामना कराती है।
बच्चों के प्रति अमानवीय व्यवहार की वजह क्या है?
यह एक नई घटना नहीं है कि स्कूल के माहौल में बच्चों को प्रताड़ित किया गया हो। देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसी घटनाएं समय-समय पर सामने आती रहती हैं।
- कुछ मामलों में, मासूम बच्चों को मारपीट करके चोट पहुंचाई गई है।
- कहीं उन्हें अपमानजनक सजाएं दी गई हैं।
- तो कुछ मामलों में तो बच्चों की जान भी खतरे में डाल दी गई है।
बच्चों को अनुशासन सिखाने के नाम पर इस प्रकार का अमानवीय व्यवहार निस्संदेह शिक्षा की मूल भावना के विरुद्ध है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी एक अपराध है।
कानूनी और सामाजिक पहलू
भारत में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कानून स्थापित किए गए हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम और बच्चों की सुरक्षा संबंधी कानून यह स्पष्ट करते हैं कि बच्चों के प्रति शारीरिक सजा या मानसिक प्रताड़ना एक गंभीर अपराध है।
फिर भी, यदि ऐसे मामले स्कूलों के भीतर घटित हो रहे हैं और विद्यालय प्रशासन खामोश है, तो यह हमारे प्रणाली की एक स्पष्ट कमजोरी को दर्शाता है।
निष्कर्ष
मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय का मामला केवल एक मां और बेटे की कहानी नहीं है; यह हमारे शिक्षा तंत्र की एक गंभीर समस्या को उजागर करता है, जहां बच्चों की सुरक्षा और उनका सम्मान अक्सर उपेक्षित हो जाते हैं।
अगर स्कूलों में सुरक्षा नहीं होगी, तो बच्चे अधिगम कैसे कर सकेंगे? और अगर कानून चुप रहता है, तो अपराधी कैसे रुकेंगे? अब आवश्यक है कि शिक्षा संस्थान, प्रशासन और समाज मिलकर बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें।
क्योंकि बच्चों की निस्संदेह मासूमियत से महत्वपूर्ण कोई पाठ्यक्रम नहीं है, और उनकी सुरक्षा से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता।
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