अधूरा सपना: नल–जल योजना की वास्तविकता
बिहार सरकार ने नल-जल योजना की शुरुआत इस उद्देश्य से की थी कि हर घर में स्वच्छ पेयजल पहुंच सके, ताकि लोग गंदे तालाबों और हैंडपंप के पानी पर निर्भर न रहें। मुजफ्फरपुर के वार्ड 19 में भी यह परियोजना शुरू की गई। सड़कों की खुदाई हुई, पाइप लाइनों का बिछाव किया गया, जिससे लोगों में यह विश्वास जगा कि उन्हें अब पानी के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन यह विश्वास जल्द ही निराशा में बदल गया।
ठेकेदार ने काम अधूरा ही छोड़ा और पाइपलाइन तो लगा दी, लेकिन पानी का कनेक्शन शुरू करने से पहले ही वह गायब हो गया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले एक साल से ठेकेदार का कोई पता नहीं है। विभाग के अधिकारी इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं, और आम जनता को अपनी समस्याओं के साथ अकेला छोड़ दिया गया है।
पानी के लिए लंबा सफर
वार्ड 19 के निवासी बताते हैं कि उन्हें रोजाना अपनी ज़रूरतों के लिए 2 से 2.5 किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है। इस मामले में महिलाओं और बच्चों की स्थिति सबसे खराब है। सुबह-सुबह, लोग पानी लाने के लिए लंबी कतारों में लगते हैं, और फिर भारी बालटियों या ड्रम को सिर पर रखकर घर लौटते हैं।
बुजुर्गों का कहना है कि पहले से ही इलाके में स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छता की समस्याएँ मौजूद हैं, और अब पानी के लिए लंबे सफर ने उनकी कठिनाइयों को और बढ़ा दिया है। बच्चों को अपनी पढ़ाई की बजाय ज्यादा समय पानी लाने में लगाना पड़ता है।
गर्मी में बढ़ती परेशानियाँ
गर्मी के मौसम में ये समस्याएँ और भी गंभीर हो जाती हैं। तालाब और कुएं सूखने लगते हैं, और हैंडपंपों से भी गंदा और अपर्याप्त पानी मिल रहा है। ऐसी स्थिति में, जो पाइपलाइन बनाई जानी थी, वह अधूरी पड़ी है। लोग यह सवाल उठाते हैं कि जब सरकारी योजनाएँ करोड़ों रुपये के बजट के साथ बनाई जाती हैं, तो क्यों उनका कार्य पूरी नहीं होता?
जवाबदेही का अभाव
इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती जवाबदेही का न होना है। योजना के दस्तावेजों में भले ही वार्ड 19 को ‘हर घर नल का जल’ से जोड़ने का दावा किया गया हो, लेकिन असल में यह योजना अधुरी है। न तो सरकारी अधिकारी इसकी उचित निगरानी कर रहे हैं, और न ही ठेकेदार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की जा रही है।
स्वास्थ्य पर खतरे
पानी की कमी केवल एक असुविधा नहीं, बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा भी बन सकती है। स्वच्छ जल की अनुपलब्धता से डायरिया, हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां फैलने का जोखिम बढ़ जाता है। आवश्यकता के समय, लोग मजबूरन गंदे जल स्रोतों का उपयोग करने लगते हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष
मुजफ्फरपुर का वार्ड 19 इस समय जल संकट से गंभीरता से प्रभावित है। यह केवल एक मोहल्ले की समस्या नहीं है, बल्कि बिहार और देश के कई अन्य क्षेत्रों की वास्तविकता है, जहां योजनाएं तो बनाई जाती हैं, लेकिन वे अधूरी रह जाती हैं।
पानी लोगों के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। यह सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को यह सुविधा समय पर और विश्वसनीय तरीके से मुहैया कराए। अधूरी पाइपलाइनों और गायब ठेकेदारों की स्थिति सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का ही संकेत नहीं है, बल्कि यह आम जनता की दैनिक ज़िंदगी में चुनौती और मजबूरी का भी प्रतीक है।
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