दो साल बाद भी नहीं बदली स्थिति: मरीजों को खून की जांच के लिए भटकना पड़ रहा है

दो साल बाद भी नहीं बदली स्थिति : बड़ी समस्या

दो साल बाद भी नहीं बदली स्थिति: मरीजों को खून की जांच के लिए भटकना पड़ रहा है 

मुजफ्फरपुर का श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) को उत्तर बिहार का सबसे बड़ा सरकारी हॉस्पिटल माना जाता है। यहां हर दिन हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं और यह माना जाता है कि इस बड़े संस्थान में उन्हें बेहतर सेवाएं मिलेंगी। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है। स्थिति यह है कि इस अस्पताल में दो साल पहले शुरू किए गए डिजिटल ब्लड सैंपल कलेक्शन सेंटर से मरीजों को अब तक कोई राहत नहीं मिली है। खून की जांच के लिए मरीजों को कई स्थानों पर दौड़ना पड़ रहा है।

डिजिटल सुविधा का उद्देश्य और वास्तविकता

दो वर्ष पहले, एसकेएमसीएच प्रशासन ने डिजिटल ब्लड सैंपल संग्रह केंद्र की स्थापना की थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि मरीज एक ही स्थान पर खून का सैंपल देकर आसानी से अपनी रिपोर्ट प्राप्त कर सकें। इस सुविधा का लक्ष्य अस्पताल की भीड़ और अव्यवस्था को कम करना भी था। हालांकि, शुरू से ही यह केंद्र अव्यवस्थित साबित हुआ। स्टाफ की कमी, मशीनों में तकनीकी समस्याएं और प्रबंधन की लापरवाही ने इसे केवल एक दिखावे में बदल दिया।

मरीजों की परेशानियाँ

जो मरीज पहले से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं या कमजोरी का सामना कर रहे हैं, उनके लिए अस्पताल में चक्कर लगाना बहुत कठिनाई भरा हो सकता है। एक बुजुर्ग मरीज ने साझा किया कि उन्हें खून का सैंपल देने के लिए लंबी कतार में खड़े रहने के बाद बताया गया कि यह परीक्षण एक अन्य लैब में किया जाएगा। जब वह वहाँ पहुँचे, तो भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उन्हें घंटों तक इंतजार करना पड़ा।

कुछ मामलों में तो मरीजों से दो बार खून लिया गया। डॉक्टरों का कहना है कि यह तकनीकी रूप से आवश्यक है, लेकिन मरीजों के लिए यह केवल एक और असुविधा बन जाती है। सोचिए, जो मरीज पहले से ही दर्द और चिंता में हैं, उन्हें बार-बार सुई लगाना कितना अपमानजनक हो सकता है।

प्रशासन की चूक

डिजिटल सेंटर की स्थापना बड़े आश्वासनों के साथ की गई थी। यह दावा किया गया कि यह सुविधा अत्याधुनिक होगी और मरीजों को उनकी रिपोर्ट समय पर मिलेगी। लेकिन दुर्भाग्यवश, न तो मशीनों की नियमित देखरेख की गई और न ही पर्याप्त तकनीकी स्टाफ की भर्ती की गई। इसका परिणाम यह हुआ कि केंद्र धीरे-धीरे निष्क्रिय होता चला गया।

प्रशासन की अनदेखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो साल बीत जाने के बावजूद इस सेवा को फिर से सक्रिय नहीं किया जा सका है। इस स्थिति में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस परियोजना में लगाई गई सरकारी राशि का क्या हुआ? और क्यों जिम्मेदार अधिकारी इस स्थिति का समाधान नहीं कर रहे हैं?

निष्कर्ष

एसकेएमसीएच जैसे बड़े अस्पताल में मरीजों को खून का सैंपल देने के लिए भटकना एक गंभीर समस्या है। यह केवल तकनीकी कमी नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली की संवेदनहीनता को भी उजागर करता है। यदि डिजिटल ब्लड सैंपल कलेक्शन सेंटर सुचारू रूप से काम करे, तो इससे मरीजों को काफी राहत मिलेगी और अस्पताल की कार्यप्रणाली पर लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा। 

इस मुद्दे को सरकार और अस्पताल प्रशासन को प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएँ किसी भी समाज की आत्मा होती हैं, और इसके बिना आम जनता के लिए बेहतर जीवन की कल्पना करना कठिन है।

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